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कोशी के लिए झींगा (Prawn) बनाया

आज रविवार का दिन है। सुबह पहले तो विभा ने बाबूजी के लिए बंगाली शैली का नाश्ता बनाया। लुची,चने कि हलकी मीठी दाल और बैंगन भाजा। मिष्टी दही बाज़ार से आ गया था, सुबह के दिव्या बंगाली नाश्‍ते के साथ बंगाली सफ़ेद रसगुल्ला भी था, जो कोशी ने मुझे खाने नही दिया। मधुमेह से ग्रस्त पिता के प्रति बेटी सचेत हो जाये, तो रसगुल्ला नहीं मिलता।

विचार हुआ कि दोपहर में झींगा खाया जाए। मैंने कोशी से पूछा कौन से स्टाइल का खाना है। उसने कहा कि नारियल डाल के साउथ या कोंकण शैली का। मुझे तो मजा ही आ गया। खाना बना कर खिलाने का आनंद कविता सुनाने के टक्कर का होता है। अगर स्वादिष्ट व्यंजन बन जाए तो सालों उसका स्वाद याद रहता है किसी प्यारी कविता की तरह। बहरहाल, मैंने एक आदत तो डाल ली है और मेरी बेटियों ने उसे अपना लिया है कि खाना कहीं का बेस्वाद नही होता। अगर कहीं घूमने जाओ तो वहीं के व्यंजन खाओ। हालांकि कपड़ों की तरह भोजन में भी एकरूपता लाने की साजिश चल रही है। इससे लड़ने का एक ही तरीका है कि गोवा में जाकर तन्दूरी रोटी और चिकेन न खाएं। खैर,आज कोशी और मैंने मिल कर केरल के कैथोलिक परिवारों में प्रचलित झींगे का व्यंजन तैयार किया और डट कर खाया।

क्या आप भी आजमाना चाहेंगें? बेटियों के लिए मैंने कई व्यंजन तैयार किये हैं। बनाने में आसान और खाने में स्वादिष्ट। यह तो बात हुई कोशी की।

तोषी की ग्रुप प्रदर्शनी कल लाहौर में शुरू हो रही है। वहां भारत के दो छात्र हैं। सार्क के 8 देशों के 22 छात्र इसमें हिस्सा ले रहे हैं। उसने हाल में ही बताया कि वह आजकल पढ़ भी रही है। मेरे लिए यह ख़ुशी और गर्व की बात है। आप भी उसकी प्रदर्शनी का आमंत्रण पत्र देखें। यह पत्र भी उसी ने डिजाईन की है।


तोषी का फोर्मल नाम विधा सौम्या है.

1 comment:

mamta said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर।

तोषी को उसकी प्रदर्शनी के लिए शुभकामनाएं।