अनंत तस्‍वीरें दृश्‍यावलियां ख़बर ब्‍लॉग्‍स

लो भी हम भी आ गए...

अविनाश! निमंत्रण देने का धन्यवाद। बहुत ही अच्छे विषय पर ब्लॉग बनाया है। मेरा एक सुझाव है, फ़्लिकर पर एक ग्रुप शुरु कर दिया जाएं, जहाँ पर बेटियों के कार्यकलापों पर फोटो,ड्राइंग्स वगैरहा शेयर किए जा सकें।

लो जी, हम भी आ ही गए, बेटियो वाले ब्लॉग पर। मेरी भी प्यारी प्यारी दो बेटिया है, दिव्या(उम्र १४ साल) और रीत (उम्र सात साल), बड़ी वाली थोड़ी धीर गंभीर है और छोटी वाली ज्यादा चुलबुली। वो शायद इसलिए है कि बड़ी वाली काफी समय हमारे बड़े भाईसाहब के यहाँ ज्यादा समय पली बढी है। खैर...इस बारे में फिर कभी।

बेटा हो या बेटी, हमने कभी फर्क नही समझा। हमने उसको उसी तरह पाला पोसा है जिस तरह से लड़कों को पाला पोसा जाता है। यही कारण है कि मेरी छोटी बेटी जहाँ नृत्य संगीत मे रुचि रखती है, उतनी ही बाक्सिंग/कराटे/ताइक्वांडो मे भी। हालांकि इसके इस शौंक का अक्सर शिकार मै ही बनता हूँ। अब समाज मे भी धारणाए काफी कुछ बदल चुकी है, लेकिन अभी भी गांवो/छोटे शहरों मे बेटो को बेटियों से अधिक महत्व दिया जाता है। मेरे विचार से इसके सामाजिक/आर्थिक कारण भी रहे होंगे। भारत एक कृषि प्रधान देश है, लगभग एक तिहाई लोग खेती पर निर्भर है। खेती करना मूलत: मेहनत वाला काम होता है, इसलिए लोग अक्सर परिवार को चलाने के लिए लड़के को प्राथमिकता देते थे। इसका एक बड़ा कारण अशिक्षा भी था। लेकिन आज शिक्षा के प्रसार और समान अवसरों के चलते लोग अपनी धारणाएं बदलने लगे है। लेकिन अभी समय लगेगा। कम से कम पढे लिखे लोग अपनी विचारधारा मे बदलाव लाएं, यही सबसे बड़ी बात होगी।

आप लोगो से सम्पर्क बना रहेगा, आज जानबूझ छोटी सी पोस्ट लिखी है, ताकि आगे की पोस्ट के लिए कुछ मसाला बचा कर रख सकूं।

4 comments:

अफ़लातून said...

जीतू जी , पढ़ कर अच्छा लगा।वैसे अपने देश में खेती में हर तरह का काम महिलाएं करती हैं।

VIMAL VERMA said...

बात आपने सही कही है,बेटियों के ब्लॉग आपको देख कर अच्छा लगा.

संजय बेंगाणी said...

बेटी के भाग्यवान चिट्ठाकारों....काश हमारे भी बेटी होती...मगर हमें हमारे निक्खटू पर भी नाज है. बस हम आपके समुदाय का हिस्सा नहीं बन पायेंगे.

Udan Tashtari said...

:( दो बेटे हैं... :(