अनंत तस्‍वीरें दृश्‍यावलियां ख़बर ब्‍लॉग्‍स

और यह कोशी का ब्लॉग

बहुत इसरार करने पर आखिर कोशी ने अपना ब्लॉग बना ही लिया. वह नई नई बातें सोचने में जितनी तेज़ है, उसे कार्यांवित करने में उतनी ही आलसी. यह ब्लॉग भी लगातार कोंचते रहने का नतीज़ा है. हालांकि कम्प्यूटर पर सारे कामों में वह मेरी मदद करती है, मुझे सिखाती है, मगर अपनी ही बातों के प्रति उदासीन है. हो सकता है, यह किशोर उम्र का तकाज़ा हो. आखिर हम जब इस उम्र में थे तो क्या कर लेते थे? कुछ भी नहीं. उस लिहाज़ से आज के बच्चे बडे तेज़, समय के साथ बल्कि समय से तनिक आगे ही हैं.
कोशी ने दो साल पहले, जब वह दसवीं में थी, तब अपनी क्लास की कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक ब्लॉग बनाया था, उसका नाम था-http://paripoems.blogspot.com/ इसमें वह और उसकी दोस्त अपनी लिखी कविताएं पोस्ट करती रहीं. फिर जैसा कि होता है, इस ब्लॉग से उसका मन उचट गया. दोस्तों ने भी लिखना बन्द कर दिया, कोशी ने भी. बाद में इस ब्लॉग से कुछ कविताएं ले कर मैने अपने ब्लॉग http://chhutpankikavitayen.blogspot.com/ पर डालीं.
इसके बाद कोशी ने फिर एक ब्लॉग बनाया. मगर क्या बनाया, किस नाम से, क्या लिखा, कुछ याद नहीं. इस पर एक गीत लिखा जा सकता है.
कोशी के अबतक के जीवन में कई विचार आए -अपने कैरियर को ले कर. वह अपनी दीदी तोषी की तरह शुरु से मुतमईन नहीं थी कि उसे आर्टिस्ट ही बनना है. उसके कैरियर-विचार की यात्रा शुरु होती है 1994 से, जब सुष्मिता सेन मिस यूनिवर्स और ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड बनी थी. तब वह दो साल की थी, मगर किसी के पूछने पर कि वह क्या बनेगी, बडे स्टाइल में गर्दन टेढी करके बोलती थी- "मिस वर्ल्ड". फिर सुन्दरता के इस संसार से उसका मोह भंग हुआ, जब वह स्कूल पहुंची. तब वह अपने टीचर्स के सम्पर्क में आई और हर बच्चे की तरह राग अलापने लगी कि वह बडी हो कर टीचर बनेगी. इसके बाद उसकी सोच में तनिक ठहराव आया और फोटोग्राफी करने लगी. तब फिर वह कहने लगी कि वह इस फील्ड में भी अपना कैरियर बनाने की सोच सकती है.
इसके साथ ही वह सोचने लगी अपने कैरियर के बारे में और कहने लगी कि वह अब फैशन डिजाइनर बनेगी. अबतक अपने कैरियर-विचार के इस जंगे मैदान में डटी हुई है. उसके प्रति तनिक गम्भीर भी है. अपने रोजाना के पहरावे में भी उसकी अलग रुचि है और पहनने के तौर तरीके एकदम अलग. इससे लगता है कि वह इस लाइन में चली जाएगी.
कोशी के इस ब्लॉग में आज के फैशन, उस पर उसके विचार, अपने पहनावे और रहन सहन पर उसकी टिप्पणियां, उसकी तस्वीरें, उसके साथ रोजाना होनेवाली बातें, उसके दोस्त, उनकी बातें सब आएंगी, मगर ज़रा धीरे धीरे. अभी वह अपने को सहेजने में लगी है और अपने रोजाना के घटनाक्रम से अपनी यात्रा की शुरुआत की है. लिखना शुरु किया है, आप सबके मार्गदर्शन, सुझाव, स्नेह से उसे अपने ब्लॉग को संवारने में मदद मिलेगी और खुद को भी. और हां, उसके ब्लॉग का नाम है- http://koshysblog.blogspot.com/

"एक्सप्लोसिव्स" में तोषी ने उकेरा ड्राइंग का एक नया पन्ना


आज जब हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ आग उगल रहे हैं, वैसे में तोषी यानी विधा सौम्या अपनी कला के माध्यम से दोनों देशों के बीच एक नया पुल रचने की प्रक्रिया में है. ज़ाहिर है कि पुल निर्माण की इस प्रक्रिया में वह अकेली नहीं है. उसके पाकिस्तान के दोस्त और शुभचिंतक भी हैं, जिनके लिए कला और अभिव्यक्ति एक दूसरे को समझने के बेहतरीन माध्यमों में से एक है.
आज तोषी के आर्ट एक्जीबिशन की ओपनिंग है- लाहौर के "ग्रेनॉयज" आर्ट गैलरी में. अपने लाहौर प्रवास में उसके चित्रों की कई एकल व ग्रुप प्रदर्शनियां हो चुकी थी. हिन्दुस्तान आने के बाद लाहौर के लिए यह उसकी पहली प्रदर्शनी है. मुंबई में उसका एक ग्रुप शो हो चुका है.
"एक्सप्लोसिव्स" नाम से 15 ड्राइंग के सेट की एक पूरी की पूरी किताब इस प्रदर्शनी में है. इस ड्राइंग के सेट में आज शहर में एक शहरी तरीके से जी रहे जीवन के अन्दाज़ को अपनाए हुए उन लोगों के बारे में कहा गया है जो शहर में रहते हुए और शहर की नज़ाकत के साथ पलते हुए मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से सेक्स और सेक्स की दुनिया को समझने की कोशिश करते हैं और तदनुसार उसे अपने जीवन में ढालने का प्रयास करते हैं. और इस तरह से सेक्स उनके जीवन में एक योजनाबद्ध रूप में प्रस्तुत होता है.
इस ड्राइंग के सेट में साहित्य में व्यंग्य की तरह इन रेखा चित्रों में व्यंग्य कुछ कुछ कार्टून की शक्ल में आते हैं, जो लोगों को तनिक हंसाते, तनिक गुदगुदाते हैं. किंतु, व्यंग्य रचना की तरह ही यह जीवन के उन गहरे पन्नों को भी खंगालने की कोशिश करते है.
प्रदर्शनी में गई पुस्तक मूल पुस्तक का प्रिट फॉर्म है. यह हाथ से बनाई एक किताब के रूप में है और इसी रूप में इसे प्रदर्शनी में रखा जा रहा है. इसे डिजिटली पुन:प्रस्तुत किया गया है, मगर इतनी सफाई से कि यह मूल कार्य का सुख देता है. बन्द रूप में यह किताब 10x8.5" इंच व खुले रूप में 10x17" इंच की है. यह प्रदर्शनी 25 -30 अक्तूबर, 2009 तक चलेगी.

और कोशी ने जीत लिया मैदान


कोशी ने अपने कॉलेज का नाम रोशन कर दिया. वह क्रिएटिव है, अपनी दीदी तोषी की तरह. यूं उसके कैरियर -विचार की यात्रा मिस यूनिवर्स से शुरु हुई थी. तब देश की दो सुन्दरियों- ऐश्वर्या राय और सुष्मिता सेन मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड का खिताब जीत कर दुनिया भर में तहलका मचा रही थीं. कोशी उस समय दो- तीन साल की थी. मगर पूछने पर कि तुम बडी हो कर क्या बनोगी, उसने कहना शुरु कर दिया था- "मिस वर्ल्ड" शायद तब उसे मिस यूनिवर्स कहना नहीं आता होगा. उसके बाद जब उसने स्कूल जाना शुरु किया तो कहने लगे कि बडी हो कर वह टीचर बनेगी. अब वह काफी दिनों से फैशन डिज़ाइनर के कैरियर पर सवार है.

पिछले साल आईआईटी के सालाना महोत्सव "मूड इंडिगो" में उसने अपनी ड्रेस डिज़ाइन करके भेजी थी, जो चुनी गई थी. इस साल सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज के सालाना महोत्सव "मल्हार" में उसने "प्रोजेक्ट ब्रॉडवे" में हिस्सा लिया, जिसमेँ ड्रेस डिजाइन करके, उसे मॉडल को पहना कर फोटो लेनी थी और 5 फोटो जमा करने थे. यह फैशन स्टाइलिंग् और फैशन फोटोग्राफी थी. 3 प्रतिभागियों का ग्रुप था, जिसमें एक को ड्रेस डिज़ाइन करना था, एक को मॉडल बनना था और एक को फोटो खींचनी थी. इसके लिए 5 घंटे का समय निर्धारित था, जिसमें एक घंटा वर्कशॉप के लिए तय था.

कोशी ने अपने कॉलेज मिठीबाई का प्रतिनिधित्व किया. इनलोगों ने ड्रेस डिजाइन से लेकर फोटोग्राफी और मॉडलिंग पर बहुत मेहनत की. मॉडलिंग का काम कोशी को करना पडा. आखिर उन सबकी मेहनत् रंग लाई और "प्रोजेक्ट ब्रॉडवे" में उसकी टीम को पहला पुरस्कार मिला. बच्चों के लिए और मुँबईकर के लिए सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज के सालाना महोत्सव "मल्हार" का अपना खास स्थान है. यहां के सभी इवेंट बडे कठिन होते हैं और इनमें कुछ कर सकनेवाला बच्चा सचमुच "कुछ कर सके" के एहसास से भर उठता है. कोशी और उसकी दोस्तों की यह उपलब्धि उसके साथ-साथ उसके कॉलेज के लिए भी गौरव की बात है, क्योंकि सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज के सालाना महोत्सव "मल्हार" में मुंबई के उप नगरीय इलाकों के कॉलेजों का आना ही अपने-आप में गर्व का विषय है, और वह भी प्रथम पुरस्कार के साथ.

मार्क्स अंकल मर गए हैं मम्मी?

नयना इतिहास पढ़ाती हैं। तिन्नी हर दिन उनकी किताब के किसी पन्ने तक पहुंच जाती है। पूछते रहती है कि ये क्या है, ये कौन है? नयना जवाब देती रहती है ये लेनिन है,ये गांधी हैं,ये मार्क्स हैं,ये हिटलर हैं,ये अकबर है। तिन्नी हैरान हो जाती है। फिर पूछती है कि ये सब अंकल लोग कहां हैं। नयना कहती है कि सब मर कर तारा बन गए हैं। तो तिन्नी का जवाब सुनने लायक है। कहती है मम्मी तुम क्या ऐसी किताब पढ़ती रहती हो जिसमे सारे अंकल लोग मर ही गए हैं। तिन्नी को एक बात और परेशान करती है कि मम्मी की किताब में सारी तस्वीरें अंकल लोगों की ही क्यों हैं। आंटी लोग कहां हैं।

तोषी का एक्जीबिशन

आज तोषी का ग्रुप एक्जीबिशन आरम्भ हो रहा है.आप मुंबई में रहते हैं तो ज़रूर पधारें. अरे हाँ तोषी का ही नाम विधा सौम्या है.

पति ने जिंदा जला दिया और उसके सामने शराब पी कर जलते हुए का मुजरा देखे।

बेटियां जन्म लेती है तो प्यारी दिखती हैं। कईयों का दिल बाग बाग हो जाता है। और कई अपने किस्मत को रोते हैं। बेटियों के ब्लॉग में हम हमेशा अपने प्यार का इजहार करते आए हैं। पर आज मुझे सचमुच डर लग रहा है अपनी बेटियों के भविष्य को लेकर।
डर है तो समाज से, ना जाने कब वह बलात्कार की शिकार हो जाए या ना जाने कब उसे जला दिया जाए। छह महिने की लड़की के साथ भी बलात्कार हुआ है औऱ ना जाने कितने बुढी हो जाने तक उम्मीद बनी होती है। हमारा सभ्य समाज दानव बन चुका है।
मेरी एक परिचित को उसके पति ने जिंदा जला दिया और उसके सामने शराब पी कर जलते हुए का मुजरा देखे। सोच ही कितनी दर्दनाक है मन कांप उठता है और साथ ही साथ रो भी उठता है। सोचती हूं अगर मेरे साथ होता तो क्या होता मेरी बेटी के साथ होता तो क्या होता। वह भी किसी की बेटी थी, वह भी किसी की मां थी। पांच दिन से पटना में हॉस्पिटल में पड़ी है औऱ अभी भी नंगा नाच हो रहा है। पति खुलेआम हमदर्दी बटोर रहा है और अपने को बचाय हुए है पर आज सभी ज्वाला फट चुकी और उसने अपना बयान लिखवा दिया है। उस हॉस्पिटल में कुलर तक नहीं है। पता नहीं किस जन्म का भोग, भोग रही वह लड़की अभी तक जिंदा है और बयान अपने पति के खिलाफ नहीं देने का जैसे उसने प्रण कर लिया था। अभी भी भय ग्रस्त है या फिर किसी ने यूं डरा रखा था।
मां बाप कुछ नहीं कर पा रहे हैं। समझदारी की बात है कि नासमझी की मैं नहीं सोच पा रही हूं। शायद उस उम्र तक जाने के बाद मैं भी उनकी तरह सोचूं। उम्र के साथ ही समाज को समझने का नजरिया बदलता रहता है।

लड़कियां ही क्यों आग में झुलसाई जाती है लड़के क्यों नहीं। मेरी इच्छा होती है कि मैं भी उसके पति को यूं ही जला दूं सबके सामने औऱ देखुं कि कैसी तकलीफ होती है। यह तो मेरी परिचित है तो मैं परेशान हूं पर ना जाने कितनी लडकियां यूं ही जला दी गई है औऱ ना जाने औऱ कितनी जला दी जाएगी।
लड़कियां तभी जलाई जाती है जब वह पुरुष को चुनौती देती है। पुरुष का अहं ही सारे झगडों का जड़ होता है।

वोट का अधिकार और उसका उपयोग

इस बार पहली बार तोषी अपने वोट के अधिकार का प्रयोग करेगी। लेकिन एक आम मतदाता की तरह उसकी भी भ्रमित स्थिति है की किसे वोट दे? कोई भी नेता बाद में न तो जनता के प्रति जवाबदार होता है न देश के प्रति। वह चाहे किसी भी पार्टी का हो। कल हमारी बात इसी पर हो रही थी। एक तो वह पार्टियों के प्रचार के तरीके से बेहद खफा थी। उसका कहना था की हर पार्टी दूसरी पार्टी की खामियों को गिना कर अपने लिए वोट मांग रही है। वह यह नही कह रही है की उसने क्या किया या वह क्या करेगी और इस करेगी में वह यथार्थ के कितने करीब होगी। बस, किसने क्या नही किया और क्या किया की खील बखिया उधेराने में लगी हुई है। तोषी युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही है। और ज़ाहिर है की युवा वर्ग बेहद आक्रोश में है।, उसका विशवास देश के इन नुमान्दों से उठ चुका है। जो भी पार्टी सत्ता में आयेगी या आती है, उसका सारा ध्यान तो अपने अलायांसों को संभालने में लग जाता है। देश में नौकरी नहीं है। उस पर से मंदी की मार अलग से है। शिक्षा व् स्वास्थ्य ये दोनों महत्वपूर्ण सेक्टर अमीरों की थाती होती जा रही है,।

साम्प्रदायिकता के सवाल पर तो वह बेहद मुखर है। उसका कहना है की जिस तरह से साम्प्रदायवाद को एक अत्यन्त संकीर्ण नज़रिए से बाँध दिया गया है, वह हमें अपने पर से अपने विशवास को दुला देता है। हमें एक सम्प्रदाय खतरनाक नज़र आता है मगर दूसरा सम्प्रदाय किस तरह से कट्टर बन हुआ है, उसे देखा कर तो ख़ुद को इस सम्प्रदाय का मानने को जी नजीन करता। देश में हिन्दू कट्टरता जिस तरह से बढी है, और मुसलमान जिस तरह से पीडित हो रहे हैं, उससे कौन सच्चा हिन्दू अपने आप को हिन्दू होने के गौरव बोधग से भरेगा?

नेता अपनी दूकान चलाते हैं। वे जनता और आम आदमी के दुःख दर्द से मुखातिब नही होते। मुम्बई का आतंकवाद तो पूरे विश्व के फलक पर उभरा ही है, मगर जो रोजमर्रा की परेशानी है, उससे कैसे निजात मिले? मई शुरू होने को आई है, जून में यहाँ बारिश शुरू हो जाती है। मगर मुम्बई की सालाना साफ़-सफाई नदारद है। मेट्रो परियोजना के कारण सड़को का बुरा हाल है। अभी ही ट्रैफिक भगवान भरोसे है, बारिश में क्या होगा? २००५ के बाद से सभी मुम्बईकर हिले रहते हैं बारिश के मौसम में।,

चुनाव के इस मौसम में कौन क्या करे, वह सोच नहीं पा रही है। केवल वोट के लिए वोट या कुछ और भी। तोषी की यह परेशानी एक आम मतदाता की परेशानी है।

सात बेटियों का काफिला शाम चार से सात

मैं रोज सोचती हूं कि कुछ लिखुं अपनी बेटियों के विषय में कैसे वह दोनो बड़ी हो रही है। एक दूसरे को तंग करते हुए। मेरी श्रुति उसे प्यार से मेरी बेटी पुचाकरती है और मिठी उसका स्केच पेन उसके बैग से निकाल कर भागती है कि कहीं उसे श्रुति देख कर उस से छीन ना ले। मिठी अभी सिर्फ एक साल और तीन महिने की हुई है और खूब शैतानी करती है। उसकी शैतानी देख देख कर हमलोग काफी खुश होते हैं और भविष्य के लिए तैयार होते हैं कि आगे और किस तरह का बदमाशी कर सकती है वह। मेरी मिठी, श्रुति से ज्यादा समझदार दिखती है। और मेरी श्रुति काफी दिमागी रुप से तेज है। वह कोई भी कविता चुटकियों में याद कर लेती है। अभी कल ही सुबह उसे 16-17 की टेबलस याद करनी थी। रविवार को मजे कर उसे याद आया कि सोमवार का होमवर्क था। तो सुबह उठ गई। मुझसे कहा टेबल्स लिख दो। मैं सुबह सो रही थी। मैने कहा मैं नहीं लिखुंगी अभी तुम्हे याद आई है जाओ मैं नहीं लिखती। तो उसने पापा को जगागर टेबल्स लिखवाया और मेरे नास्ता बनाने तक मुझे याद कर के सुना भी दिया और स्कूल फिर इतमिनान से चली गई। नहीं तो वह होमवर्क बिना पूरा किए स्कूल नहीं जाती।
मुझे याद नहीं आता कि मैं टेबल्स इतनी जल्दी याद कर पायी थी कि नहीं। उसके पास खूब तेज दिमाग है। वह मैथलीशरण गुप्त की कविता - मां कह एक कहानी - बहुत बेहतर ढंग से सुनाती है।

इन दो बेटियों के अलावे मेरी और भी पांच बेटियां है। यह मेरी ट्युशन की बेटियां हैं। मैं जब इन छह बच्चों को ट्युशन पढाती हूं तो सच मानिये मुझे ऐसा लगता हैं कि मैं भगवान के पूजा पाठ से ज्यादा कोई पाक काम कर रहीं हूं। चूकि मुझे बचपन से पैसे की लालच नहीं रही हैं और मैं आर्थिक रुप से शुरु से अच्छे हालात में रही हूं तो सारे मैटलिस्टक चिजों से ऊपर उठ चुकी हूं। मुझे यह भी पता नहीं है कि कैसे मेरे पास पढ़ने के लिए आए बच्चे सिर्फ लडकियां ही है। मैं कई बार सोचती हूं कि मैं लड़कों को भी उतने सिद्दत से पढ़ा पाऊंगी कि नहीं। कह नहीं सकती।
मेरे ट्रयुशन के बच्चों पर अगर उनके स्कूल की टीचर हाथ उठाती है तो मुझे वैसा ही दर्द होता है जैसा मुझे श्रुति को किसी टीचर के मारने पर होता है। मैं उसके रिजल्ट देखकर उतनी ही खुश और दुखी होती हूं जितना मैं श्रुति के रिजल्ट पर होती हूं।

मैं अपने आप को थोड़ा अब कम अटैच करती हूं बच्चों से क्योंकि मैं खुद बहुत परेशान हो जाती थी। बच्चों को पढाना बहुत बड़ी जिम्मेदारी भरा काम है। आप जब तक उसे दिल से नहीं पढायेगा वह तबतक आप से जुड़ नहीं सकता। मैं उनके साथ उनकी कवितायें याद करती हूं तभी वह भी जल्दी याद कर पाते हैं। मैने रिजल्ट के बाद उन सब की एक छोटी सी पार्टी रखी थी उनके मम्मी के साथ। पार्टी तो सफल नहीं हुई क्योंकि दो बच्चों की मम्मी नहीं आई। बच्चों ने बहुत अच्छा प्रेजंटेशन भी उस पार्टी में दिया। मैने सबको बढ़िया सा गिफ्ट भी दिया।
मेरे साल भर के मेहनत पर किसी एक मां के मुंह से यह- धन्यवाद- शब्द का बोल भी नहीं निकला। जिस कारण मैं काफी व्यथित भी हुई। आफिसों में ऐसा होता होगा कि आप मन लगाकर काम करे और बॉस आपके काम की तारीफ भी ना करे। पर यह बिल्कुल व्यकि्तगत संबध है। जब टीचर आपको पढ़ाता है वह पूरी सिद्धत से आप तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करता है। ना समय देखता है ना परिवार। सिर्फ और सिर्फ बेहतर रिजल्ट की उम्मीद रखता है। चूकि में पैसे तो लेती ही हूं इसलिए व्यवसायिक होने का दंड़ मुझे मिलेगा। तारीफ ना सही आप धन्यवाद जैसे शब्दों का इस्तमाल कर अपने को बेहतर और सामने वाले को प्रोत्साहित तो कर सकते हैं।

मजेदार घटना थी। स्कूल के रिजल्ट के दिन मैं और मेरे पति रिजल्ट लेकर निकल ही रहे थे कि प्रिंसपल पर नजर पड़ी, जो कामों मे उलझे हुए फीस की खीचातानी कर रहे थे। चूकि स्कूल में साइंस एग्जिविशन भी लगा हुआ था और सारे बच्चे अपने प्रयोग को रट कर माहिर हो चुके थे। बढिया लगा था वह आयोजन। मैने अपने पति से कहा कि प्रिंसपल को थोड़ा धन्यवाद दे दूं। हमलोग पंद्रह मिनट खड़े रहे और हमारी बारी आ ही नहीं रही थी। और आफिस जाने के चक्कर में देर हो रही थी इसलिए निकल आए। बाहर खड़े हो कर सोचने लगे कि अब क्या करें। फिर मन में आया नहीं ये बुजुर्ग इंसान जो इतनी मेहनत कर रहें हैं हमारे बच्चों के ही खातिर उनंहे धन्यवाद देना बहुत जरुरी है। हमदोनो फिर घुसे और उनके काम को बीच में बाधित कर सारे लोगों के सामने उन्हें धन्यवाद दिया। मैं भी अपने शब्दों में कुछ बोली। कुल मिलाकर माहोल बड़ा आंदित हो गया। सर ने खड़े हो कर हमारा सम्मान लिया। और हमदोनों को बल्कि सारे लोगों को यह बहुत अच्छा लगा।

मैं इतनी मेहनत अपने बच्चों के प्रति सिर्फ और सिर्फ इसलिए करती हूं कि मुझे अपने बचपन की पढ़ाई मे जिन दिक्कतों का सामना उम्र भर करना पड़ा वह मैं उन्हे नहीं होने देना चाहती।

बेटियों के ब्लॉग से अपने मन की भड़ास कह पाने का जरिया बहुत बढिया है।

पुनीता

अर्थ दे (धरती दिवस) और कोशी

पिछले शनिवार को विश्व भर में पर्यावरण के बचाव के लिए अर्थ दे यानी धरती दिवस मनाया गया। उस दिन सभी से अपील की गई की वे अपने घरों के बिजली, पंखे व बिजली के अन्य उपकरण रात साधे आठ बजे से साक्स्धे नौ बजे तक बंद रखें। यानी एक घंटा। यूँ यह कोई मुश्किल काम नहीं था, मगर मुम्बई में बिजली नहीं जाती। (अभी तक तो शुक्र है। आगे का पाता नहीं) हमलोग तो अपना पूरा समय, बीए, एमए की पूरी की पूरी पढाई ही लैंप के साए में कर आए थे। मगर एक घंटा बिजली न जलाए रखना मुम्बई वासियों के लिए एक सजा की माफिक ही लग रहा था। कोशी ने दो दिन पहले से ही हमें इस बाबत कह रखा था की बिजली नहीं जलानी है।
शनिवार की शाम उसने घर की मोमबत्तियां खोजीं, निकालीं, साफ़ की और एक घंटा बिजली न जलाने के लिए तय्यार हो गई। हम सब भी इसके लिए तैयार हो गए। शायद ध्यान न भी देते, मगर चूंकि कोशी ने कह रखा था, इसलिए उसकी बात न मानना बच्चे का दिल दुखाना होता। इसलिए भी हम सभी तैयार हो गए। मुझे इस बात की तसल्ली रही की उसके भीतर पर्यावरण को लेकर एक चिंता है। उसकी यह चिंता दीवाली के समय भी दिखी थी, जब उसने पटाखे आदि छुडाने से साफ़ मना कर दिया यह कहते हुए की यह ग्लोबल वार्मिंग को और भी बढाता है।
वह रात को आठ बजे अपने दोस्तों से मिलाने जाती है। जब वह लौटी, तब हमने उसे छेदा की तुम तो नीचे लाईट में खेल रही होगी, जब की हम सब अंधेरे में बेठे रहे॥ उसने तुंरत जवाब दिया की वह एक घंटे अपनी दोस्त झिमली के घर अँधेरा करके खेल रहे थे। मुझे इस बात का संतोष हुआ की उसने केवल कहने के लिए सभी को नहीं कहा, बल्कि ख़ुद भी उस पर अमल किया। हम सभी के लिए यह बड़ा ही दुखद रहा की हमारे सभी घरों में बत्तियां जलती रहीं। हम सोचने लगे की हम केवल मांग करते रहते हैं। समाज, सरकार, व्यवस्था पर सवाल खरे करते रहते हैं। उन्हें भला-बुरा कहते हैं। मगर जब ख़ुद से कुछ कराने की बारी आती है, तब स्वेच्छा से कुछ भी नही करना पसंद करते। किसी ने कहा की बिलालों को चाहिए था था की वे पूरी बिल्डिंग की ही लाईट काट देते एक घंटे के लिए। यह करना मुश्किल नहीं था। बिल्डिंग की सोसाइटी चाहती तो यह काम कर सकती थी। मगर यह तो एक निजी अपील थी सभी से एक स्वेच्छया सहयोग देने की बात थी। क्यों हम अपने मन से कुछ भी सहयोग देने से पीछे रह जाते है? मुझे याद है, १९६५ में पाकिस्तान से युद्ध के बाद जब देश पर खाद्यान का संकट आया था और अमेरिका ने गेहूं के निर्यात पर शर्तें रखी थीं, तब हमारे उस समय के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपील की थी की सभी देश वासी सोमावार्र को एक शाम भोजन स्वेच्छा से त्याग दें.इससे जितनी बचत होगी, उतने में हमारे देश से अनाज का संकट ताल जायेगा। हम तब बहुत छोटे थे, मगर स्कूलों तक में यह बात प्रचारित की गई थी। सभी ने एक शाम का भोजन त्यागा था।
आज वह सेवा भाव, वह स्वेच्छा से त्याग कहाँ गम हो गया है? मुझे खुशी है की कोशी, जो अब नई पीढी का प्रतिनिधित्व कर रही है, सामाजिक, वैश्विक, पर्यावारानीय चिंता से जुडी है और अपना योगदान यथा शक्ति कर रही है। आइये, ऐसे बच्चों का साथ दें, उनकी चिन्ताओं से ही कम से कम जुडें, अगर अपनी चिंता में हम सामाजिक सरोकार को शामिल नहीं कर पाते हैः.

आज मेरी तोषी का जन्म दिन है। यकीन नहीं होता की वह इतनी बड़ी हो गई है। केवल बड़ी ही नहीं, बेहद समझदार भी। उतनी ही संवेदनशील, उतनी ही सबके प्रति फिक्रमंद। अभी उसने अपने अनुभव के वितान को बड़ा करना चाहा है। इसके लिए उसने मुम्बई की एक आर्ट गैलरी ज्वायन की है। उसके अनुभव में इजाफा हो रहा है। अब वह स्वतन्त्र रूप से दुनिया को देखनेसमझाने, पहचानने की कोशिश में है। मुझे पूरा यकीन है की वह अपनी ख़ास जगह बना लेगी और ज़ल्दी ही। उसके जन्म दिन पर उसके लिए एक तोहफा-

जिस दिन तुमको ना देखूं मैं

मन जोर कहीं से कसकता है,

तेरी मुस्काती सूरत से

मन बहुत-बहुत ही हरासता है।

तुम अपनी बातों के गुच्छे से

खुशबू खूब बिखेरती हो

हो गई हो अब तुम बहुत बड़ी

पर फ़िर भी लगता नन्ही हो,

जैसे बरखा की धारा में

बून्दीन कोई मेंही हो

मेरे जीवन की रचना प्रथम

मेरी साँसों का तुम आधार

तुमसे पाई खुशियाँ सब

तुम ही अब जीवन अब संसार

छूटा है बहुत कुछ पाने में

छूटेगा बहुत कुछ पाने में

तुम साथ रहोगी, बनोगी बल

अफसोस न होगा जाने में

उनकी प्रतिमा, मेरी परछाईं

तेरा तो जीवन आगे है

थाम लो सूरज-चन्दा, तारे

बस तेरे लिए सब जागे हैं।

कोशी और उसका कंज्यूमर कोर्ट

कोशी अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो रही है। घर में तो उसका अपना अधिकार - भाव चलता ही है, बाहर तो उसने कंज्यूमर कोर्ट के नाम से सभी को काफ़ी दारा-धमाका रखा है। कुछ बानगी देखिये-
१) कोशी अपने मोबाइल के लिए कनेक्शन लेने गई। जो स्कीम थी, दुकानदार ने उससे १०० रूपए अधिक मांगे। कोशी के मना कराने पर वह उसे कनेक्शन देने से इनकार कराने लगा। कोशी ने पहले उसे काफी समझाया की वह उससे अतिरिक्त पैसे की मांग कर रहा है, जो सही नही है। दुकानदार एक बच्ची को देख कर अकडा हुआ था। कोशी ने कहा की वह कंज्यूमर कोर्ट में उसकी शिकायत कराने जा रही है। और उसने फोन घुमा भी दिया। बस क्या था, दूकान का दूसरा आदमी बीच में आ गया और कहने लगा की वह, जो पैसे मांग रहा था, नया बन्दा है, और उसे कुछ भी नहीं मालूम। और इस तरह से कोशी अतिरिक्त पैसे देने से बच गई।
२) कोशी कहीं जा रही थी। रास्ते में उसे प्यास लगी। उसने पानी न खरीद कर एक ठंढा ले लिया। दुकानदार ने एम् आर पी से २ रुपये अधिक लिए बोतल ठंढा कराने के चार्ज के रूप में। कोशी ने कहा भी की यह ग़लत है और उसे एम आर पी से अधिक पैसे नहीं लेने चाहिए। दुकानदार के न मानने पर उसने फ़िर से कंज्यूमर कोर्ट में फोन किया उअर दुकानदार ने उसे २ रुपये चुपचाप वापस कर दिए।
३) हमारे घर के सामने एक दूकान है- किराने की। वहाँ भी कोशी की बहस शीत पेय पर ली जाने वाली अतिरिक्त राशि को लेकर हो गई। यहाँ भी कोशी ने वही किया। आज दूकानदार की यह हालत है की वह उससे अतिरिक्त पैसे लेता ही नहीं।
लेकिन अब कोशी को थोड़ी दिक्कत होने लगी है। उसने बताया की अब कंज्यूमर कोर्ट फोन पर किसी की शिकायत नहीं सुनता। शिकायत कराने के लिए शिकायतकर्ता को ख़ुद कंज्यूमर कोर्ट जाना पडेगा। यह बात व्यावहारिक नहीं है। कहां है किसके पास वक़्त की वह एक शिकायत के लिए कंज्यूमर कोर्ट तक जाए। वह या तो चुप रह जायेगा या अधिक पैसे देगा। खासकर शीत पेय या पानी लेने के लिए। कंज्यूमर कोर्ट ने अगर फोन से शिकायत लेना बंद कर दिया है तो उसे चाहिए की वह अपनी यह व्यवस्था तुंरत समाप्त कर दे, अन्यथा कंज्यूमर कोर्ट केवल नाम भर के लिए रह जायेगा। छोटे-छोटे मसाले हाल नहीं हो पायेंगे और छोटे-छोटे बच्चे इस कोर्ट की सफलता का आनंद नहीं ले पायेंगे और एक सजग नागरिक बनने से भी वंचित रह जाएनगे।

आज मेरी मिठी का पहला जन्मदिन है


बेटियों के ब्लाग पर लिखे हुए मुझे लगभग साल भर होने जा रहा है. पीछले साल मैं अपनी बेटियों के विषय में लिखी थी. और आज पुन अपनी बेटियों के बारे में लिखने के लिए उत्सुक हूं. मन में तूफान उमड़ घुमड़ रहा है. यह तूफान पूरी तरह से खुशी की है और अपने को श्रेष्ठ समझने की.
मेरी बड़ी बेटी श्रुति के छह साल बाद मुझे दूसरी संतान सुख की प्राप्ती हुई. अति सुंदर, प्यारी, मोहक औऱ ना जाने शब्द ना खत्म होने वाली बिटिया की मैं मां बन गई। बिटिया के जन्म से घर में कहीं कोई अफसोस की लहर नहीं थी. कदाचित मन में हो रही तूफान को घर के लोग दबा रहें हो पर मुझ तक बात नहीं पहुंच पाती. यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे कहीं से ताने बाने सुनने को नहीं मिले.
दिन गुजरते रहे हांलाकि हमने उसके आने की खुशी में कोई पार्टी नहीं की पर हर दिन हमारे घर में उसके आने के बाद उत्सव सा माहोल बना रहा. हम दिन दूनी रात चौगुनी प्रगती करते रहे. सुख और शांति तो हमलोगों के मन में पहले से थी पर अब सुकून का एहसास भी होने लगा था. उसके पैर इतने अच्छे कि हमलोग अपने नए घर में शिफ्ट कर गए.
मेरे सपने थे कि मैं नए घर में अपनी बिटिया को लाल रंग के वॉकर पर घूमती देखूं. और यह भी सपना सच हो गया. वह ज्योंहि बैठने लगी हमलोग नये घर में आ गए थे.

उसकी प्यारी हंसी..... कुछ नहीं कह पाऊंगी.

नाम हमलोगों ने उसका घर पर मिठी रखा है. और बाहर का नाम अनुभूति.
नाम को लेकर काफी लोग उसे कुछ भी कहते हैं. एक तीखी और एक मिठी. सचमुच ऐसी ही है पर ऐसा कहना किसी को नहीं चाहिए. मेरी श्रुति को बुरा लगता है. श्रुति को पानीपत में उसका एक प्यारा सा दोस्त श्रुति प्रुति कहता था तो वह बहुत खुश होती थी. तो मेरी मिठी को खट्टी-मिठी, या मेथी या मिट्टी कहकर लोग प्यार से उसका नाम बिगाड़ते हैं. और वह बहुत शालीन है. जब से उसके पैर हुए हैं मतलब जब से वह चलना सीखी है बस चलती रहती है. दिनभर चलती रहेगी. औऱ कुछ कुछ सामान छुती रहेगी. बर्तन फैला कर खेलेगी, आलमारी से कपड़े निकाल कर इधर उधर बीखेरेगी, और ना जाने हमारा घर कई सामानों से बीखरा रहेगा. किसी की अगर चीज नहीं मिल रही हो तो सबका पहला शक मिठी पर ही जाता है. चार्जर कहां है भाई- तो पलंग के पीछे होगा, मिठी का पैंट नहीं मिल रहा वह भी पलंग के पीछे, सुबह का अखबार भी प्राय वहीं मिल जाएगा. मोबाइल बजता हो और कहीं ना मिले तो हमपहले पलंग के नीचे ही खोजते हैं.
उसे मैं कहीं ले जाती हूं तो मुझे बड़ा फक्र होता है. अब मुझे जाननेवाले कई लोग सोचेंगे कि क्या मैं अपनी बड़ी बेटी को भूल गई हूं. तो भाई कतई नहीं. मेरी दोनो बेटियां मेरी दो मजबूत बाजू है. मुझे दोनो पर बड़ा गर्व है. श्रुति काफी तेज है दिमाग से और काफी उर्जावान. मिठी गंभीर है और अभी उसकी तेजी का पता नहीं चला है. मैं वैसी मां नहीं हूं कि बच्चे ने सक्रूड्राइवर क्या घूमा दिया तो कहने लगे अरे मेरा बच्चा तो इंजिनीयर बनेगा. मेरी श्रुति पढ़ाई में ड़ांस में बोलने में तेज है.
श्रुति स्कूल जाते समय कहते हुए जाती है कि आज मैं तेरा नाम रौशन कर के आऊंगी. मतलब की स्कूल में प्रेयर के समय कोई भी मोरल स्टोरी सुना कर आऊंगी. मैं उसे मोरल स्टोरी याद करवाती हूं और वह पांच मिनट तक स्टोरी सुना कर आती है.
आज मेरी बिटिया का जन्मदिन है. वह पूरे साल भर की हो गई. प्यारी सी, खूबसुरत सी मेरी बेटी कुछ वर्षो में यूं ही बर्थडे मनाते हुए मुझ से दूर चली जाएगी. मुझे पता है ऐसा सब के साथ होता है। .....
सो इसलिए मैं आज का दिन भरपूर जीऊंगी. हर दिन उसका मेरे साथ किमती रहेगा. वह मेरे पास अपने व्यक्तिव विकास के लिए है उसके बाद तो उसे खुद ही अपना जीवन को मुकाम पर लाना है।

कोशी का बदलता स्वभाव

कोशी अब बड़ी हो रही है। अब उसे बड़ा होते देख मन करता है की वह फायर से नन्ही बच्ची बन जाए और हम सब उसके साथ फ़िर से खेलें। लेकिन कोशी इसके लिए राजी नही है। उसका कहना है की ऐसा होने से उसे फ़िर से नर्सरी से अबतक की पढाई पढ़नी पड़ेगी। उसकी बात में दम है। अब उसके काम में वज़न है। कल जब मैं दफ्तर से घर लौट रही थी तो उसने मुझे नीचे ही रुकने को कहा। नीचे आकर बोली की उसे बड़ी तेज़ भूख लगी है। वह नूडल्स खरी कर लाने लगी। लौटते में अचानक रुक कर कहने लगी की दीदी (तोषी) को भी भूख लगी होगी। उसके लिए भी ले लेते हैं। रात में आकर कहने लगी की पैसे दो, अम्मा की दवा ख़त्म हो गई है। दवा लाकर उसने ख़ुद ही उन्हें दवा दे दी। तीन दिन पहले वह अम्मा के लिए गाउन खरीद कर लाई। एक दिन ना पहनाने पर वह तनिक नाराज़ हो गई। दूसरे दिन पहना देने पर वह खुश हो गई। अब वह अपनी अम्मा से कहती है की अब आप सादी के बदले यही पहनिए। यही अच्छा लगता है। अपनी लाई हुई चीज़ के उपयोग से वह खुश है। उसकी जिम्मेदारियों का अहसास मन को अच्छा लगता है, मगर कभी-कभी लगता है की तोशी, कोशी दोनों फ़िर से बच्चे बन जायेम तो उनके साथ खेलने में कितना मज़ा आएगा!

तोषी व् कोशी का सेवा-भाव

आजकल तोषी व कोशी दोनों यहीं पर हैं, हमलोगों के साथ। हमारे सास-ससुर भी यहीं हैं। हर सरदी में हम उन्हें मुम्बई बुला लेते हैं, ताकि बिहार की कडाके की सरदी से वे बच सकें। वे नवम्बर से हमारे साथ हें। उनके आने से तोषी-कोशी दोनों ही बहुत खुशी महसूस करती हैं। ज़ाहिर है, हम सब भी।

इस बार नए साल की शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रही। २६ दिसम्बर से ही अम्मा की तबीयत ख़राब हुई। कम्प्लीट बेड रेस्ट। उस पर से ५ जनवरी को वे गिर गई व् तबसे बिस्तर पर हैं। कहना न होगा की उनकी सेवा में ये दोनों बहनें जिस तरह से लगी हैं, उसे देखा कर मन बहुत गर्वित हो उठाता है। अम्मा को बिस्तर से उठाना, बिठाना, दवा, खाना आदि सारे भारी-भारी काम तोषी ने यूँ अपने ऊपर ले लिया, जैसे वह यह सब कराने की अभयस्त हो। एक कुशल नर्स की तरह वह अम्मा की सेवा में जुटी रहती है।

कोशी भी अपनी सामर्थ्य भर उनकी सेवा में लगी रहती है। अब अम्मा को दवा, खाना, फल, पानी आदि देने का काम वह बखूबी कर रही है। आज उसने कालेज जाने से मना कर दिया। कहा की परीक्षा के कारण क्लासेस नहीं हो रहे और घर में रहूंगी तो अमा और दीदी की जो भी ज़रूरत होगी, उसे देख लिया करूंगी। साथ में अपनी पढाई भी कर लूंगी। प्रसनागावश बता दूँ की इधर तोषी भी तीन-चार दिनों से बीमार पड़ गई है।

इन सबके साथ-साथ ये दोनों बाबा की भी सेवा में लगी रहती हैं। रोज रात में मच्छरदानी लगाना कोशी के जिम्मे है। अपने बड़ों के प्रति उनका यह सेवा भाव यह आश्वस्त करता है की बुजुर्गों को दरकिनार कराने के दिन अभी दूर हैं। तोषी-कोशी के भाव हमें अपने बड़ों के प्रति आदर व सम्मान देना बखूबी सिखा रहे हैं और खासकर उनके लिए, जो अपने ही घर के बड़े बुजुर्गों को बोझ मानने लगते हैं।