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तोषी व् कोशी का सेवा-भाव

आजकल तोषी व कोशी दोनों यहीं पर हैं, हमलोगों के साथ। हमारे सास-ससुर भी यहीं हैं। हर सरदी में हम उन्हें मुम्बई बुला लेते हैं, ताकि बिहार की कडाके की सरदी से वे बच सकें। वे नवम्बर से हमारे साथ हें। उनके आने से तोषी-कोशी दोनों ही बहुत खुशी महसूस करती हैं। ज़ाहिर है, हम सब भी।

इस बार नए साल की शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रही। २६ दिसम्बर से ही अम्मा की तबीयत ख़राब हुई। कम्प्लीट बेड रेस्ट। उस पर से ५ जनवरी को वे गिर गई व् तबसे बिस्तर पर हैं। कहना न होगा की उनकी सेवा में ये दोनों बहनें जिस तरह से लगी हैं, उसे देखा कर मन बहुत गर्वित हो उठाता है। अम्मा को बिस्तर से उठाना, बिठाना, दवा, खाना आदि सारे भारी-भारी काम तोषी ने यूँ अपने ऊपर ले लिया, जैसे वह यह सब कराने की अभयस्त हो। एक कुशल नर्स की तरह वह अम्मा की सेवा में जुटी रहती है।

कोशी भी अपनी सामर्थ्य भर उनकी सेवा में लगी रहती है। अब अम्मा को दवा, खाना, फल, पानी आदि देने का काम वह बखूबी कर रही है। आज उसने कालेज जाने से मना कर दिया। कहा की परीक्षा के कारण क्लासेस नहीं हो रहे और घर में रहूंगी तो अमा और दीदी की जो भी ज़रूरत होगी, उसे देख लिया करूंगी। साथ में अपनी पढाई भी कर लूंगी। प्रसनागावश बता दूँ की इधर तोषी भी तीन-चार दिनों से बीमार पड़ गई है।

इन सबके साथ-साथ ये दोनों बाबा की भी सेवा में लगी रहती हैं। रोज रात में मच्छरदानी लगाना कोशी के जिम्मे है। अपने बड़ों के प्रति उनका यह सेवा भाव यह आश्वस्त करता है की बुजुर्गों को दरकिनार कराने के दिन अभी दूर हैं। तोषी-कोशी के भाव हमें अपने बड़ों के प्रति आदर व सम्मान देना बखूबी सिखा रहे हैं और खासकर उनके लिए, जो अपने ही घर के बड़े बुजुर्गों को बोझ मानने लगते हैं।

1 comment:

संगीता पुरी said...

तोषी व कोशी दोनों की सेवा भावना अच्‍छी लगी।